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गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:॥
कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति कितना ही महान क्यों ना हो, पर यदि उसे भव सागर से पार उतरना है तो उसे गुरु नाम का सहारा लेना ही होता है। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग इन चारों युगों में यदि किसी व्यक्ति को संसार के मोह माया जाल से बाहर निकलना है तो उसे किसी एक गुरु द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन पर चलना ही होता है।
गुरु द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन को भगवान द्वारा दिया गया संदेश समझा जाता है पर यदि भगवान का रूप धारण कर गुरु द्वारा दिया गया निर्देशन ही खोखला निकले तो भला ऐसे में शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? भारतीय समाज में गुरु को महत्व देने के लिए गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है जिसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु ही अपने शिष्य को नया जन्म देताहै, और गुरु सिर्फ गुरु ही नहीं साक्षात-साक्षात महादेव का रूप हैं। यदि आप पूर्ण लगन के साथ गुरु की आराधना करते हैं तो वो अपने शिष्य को कभी भी अंधकार में फंसने नहीं देता है।
अब आप स्वयं ही फैसला लीजिए कि जब बचपन से ही आपको गुरु को भगवान रूप में पूजने की और किसी भी संत को गुरु बना लेने की शिक्षा दी गई हो तो आपको आसाराम बापू जैसे हर संत में अपना गुरु नजर आएगा। करोड़ो लोग मोक्ष की प्राप्ति चाहते थे इसलिए आसाराम बापू जैसे व्यक्ति को अपना गुरु बना लिया. उन्होंने यह मान लिया कि अब उन्हें ऐसे गुरु मिल गए हैं जो उनका मार्गदर्शन करेंगे और जीवन के अंधकार से उन्हें बाहर निकाल लेंगे पर यह मात्र कल्पना ही थी क्योंकि खुद समाज रूपी माया के भवर में फंसा व्यक्ति अपने शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग नहीं दिखा सकता है। यदि आप इस बात से यह समझ रहे हैं कि हम गुरु द्वारा दिए गए निर्देशन को गलत बता रहे हैं तो आप गलत सोच रहे हैं।
तन विष की बेलरी, औरगुरु अमृत की खान,
शीश दिया जो गुरु मिलेतो भी सस्ता जान।
इसका अर्थ यह है कि गुरु ज्ञान को गुरु से भीअधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। यदि व्यक्ति को ऐसा गुरु मिल जाए जो वास्तव में उसे सच्चाई का मार्ग दिखा सके तो उसे गुरु द्वारा दिए गए निर्देशन पर चलते रहना चाहिए पर बहुत बार व्यक्ति उन निर्देशनों को अनदेखा कर देता है इसलिए उसके गुरु नाम को धारण करने का अर्थ शून्य बराबर हो जाता है।
यदि अब भी आपको हमारी बात का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ तो बहुत से सरल शब्दों में इस बात को समझा देते हैं। बचपन की एक बात तो आपको जरूर याद होगी जब आपको किसी ने कुछ अच्छा और बेहतर सिखाया होगा तो आपके माता-पिता ने आपको उस व्यक्ति को सम्मान देने के लिए कहा होगा। बस उसी बात को जरा ध्यान से याद कीजिए। वो ही पल था जब आपने अच्छी शिक्षा देने वाले व्यक्ति को गुरु नाम का सम्मान दे दिया था। सही अर्थों में जिंदगी में हर वो व्यक्ति आपका गुरु है जो आपको कभी भी किसी भी पल सच्चाई से पूर्ण और सही दिशा निर्देश करे। फिर किसी दिखावटी संत को गुरु मान के उसे समाज में धार्मिक भावनाओं के आधार पर खेलने का मौका क्यों देना!! आसाराम बापू ही नहीं निर्मल बाबा और ना जाने कितने ऐसे दिखावटी संत हैं जो मोक्ष दिलाने के नाम पर व्यक्ति की भावनाओं के साथ खेलते हैं। ऐसा प्रण लीजिए कि आपका गुरु वो ही है जो आपको सही समय पर सही दिशा निर्देश करे भले वो आपका दोस्त हो, मां हो, उम्र में आपसे छोटा कोई व्यक्ति हो, या फिर आपका विरोधी ही क्यों ना हो पर जब वो आपको सच्चाई का मार्ग दिखा रहा होता है तो उस समय वो आपके गुरु समान होता है।
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