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प्रधानमंत्री की यंत्रवत शैली, उनकी मूक, निःशब्द बुदबुदाहट, उनकी आज्ञाकारिता, उनकी विचारशून्यता और उनकी राष्ट्र के बजाय व्यक्ति विशेष के प्रति प्रतिबद्धता निश्चित ही काबिलेतारीफ है. ये नजारा हमें हर राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर देखने को मिल ही जाता है. अफसोस…घोर निन्दनीय …..तीव्र क्षोभ और निराशा के अवसाद के अलावा हमें और क्या हासिल होता है………क्या यही हमारी नियति है?
‘15 अगस्त की सुबह’, मन में आजादी के नाम का एक जोश…….शायद आजादी के मायने समझ में आ रहे थे पर ऐसा कुछ तो जरूर था, जिसे मन समझ रहा था पर शब्द नहीं दे पा रहा था. आंखों के सामने प्रधानमंत्री आते हैं जिन्हें सुरक्षाकर्मियों ने घेर रखा होता है और वह बड़ी ही धीमी चाल से मंच की तरफ जा रहे होते हैं. अचानक मन में एक विचार आने लगता है कि हमारे देश भारत के प्रधानमंत्री क्या भाषण देंगे और ऐसा क्या बोलेंगे कि हजारों की भीड़ में आजादी के नाम का जोश फिर से भर जाएगा. और जैसे ही प्रधानमंत्री ने भाषण देना शुरू किया तो ऐसा लगा जरूर इस भाषण में कुछ तो ऐसा होगा जो आजादी के मतलब को समझा पाएगा…अफसोस! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि जो सुनाई दिया वो ‘आलाकमान का आदेश’ था और जो खड़ी हुई भीड़ के हाथ लगा वो ‘हताशा’ थी.
हम आजादी के नाम का एक जोश लिए चलते हैं और बड़े ही गुरूर के साथ कहते हैं कि हमें अनवरत संघर्ष के बाद यह आजादी मिली है पर हमें एक बार फिर अपने आप से पूछ्ना होगा कि कौन सी आजादी का हम गुरूर करते हैं और वो कौन सी आजादी है जिसके नाम पर हम अपने आप को गुलाम नहीं आजाद समझते हैं. अगर आप सभी के मन में सवाल उठेगा तो आप को जवाब भी जरूर मिलेगा कि “जिस देश का प्रधानमंत्री ही गुलाम है उस देश की जनता कैसे आजाद हो सकती है?.” सोचिए जरा कि प्रधानमंत्री को जनता के लिए कार्य करने का भार सौपा गया है और वो किसी आलाकमान के कार्य पूरा करने का काम करते हैं जो प्रधानमंत्री पद की गरिमा नेस्तनाबूद कर देता है.
हजारों लोगों के खून से हमने हिन्दुस्तान की माटी को तो आजाद करा लिया था पर किसी ने कभी सोचा ही नहीं होगा कि एक बार फिर यह माटी अपने ही देश के लोगों की गुलाम हो जाएगी और फिर से आजादी की मांग करने लगेगी. हिन्दुस्तान की माटी पर जन्म लेने वाला हर एक बच्चा गुलाम है क्योंकि जनता का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री करता है और हमारे देश का प्रधानमंत्री ही किसी आलाकमान का गुलाम है तो फिर हम आजाद कैसे हो सकते है और कैसे आजादी का जश्न मना सकते है. हां, इतना तो जरूर है कि 15 अगस्त पर देश पर बड़े जोश के साथ मर-मिटने वाले हजारों लोगों की याद तो जरूर आती है पर वो याद निरर्थक हो जाती है जब इस बात का अहसास होता है कि हम आज भी सही मायनों में गुलाम ही हैं.
एक बार हमें फिर से सोचना होगा कि आजादी का मतलब क्या है. कैसी आजादी और किससे आजादी, ये वह जरूरी सवाल हैं जिनसे हर इंसान को रूबरू होना ही पड़ेगा.
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